Ranchi : इटकी रोड स्थित जसलोक अस्पताल के डाक्टर जितेंद्र सिन्हा का मानना है कि इन दिनों किडनी बिमारी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। लाखों लोग हर साल डायलिसिस तक पहुंच रहे हैं।जो न केवल खर्चीला है बल्कि कष्टकर भी होता है।किडनी बिमारी के इस बढ़ोतरी के पीछे डायबिटीज़,ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की बिमारी का बढना और चिकित्सकों द्वारा उसे पूरी तरह कन्ट्रोल न कर पाना है।
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किडनी की बिमारी को गम्भीर अवस्था तक पहुंचने में एक से दो साल का समय लगता है। इसलिए मरीज को इलाज कराने का अचछा खासा मौका मिल जाता है।यदि शुरुआती स्टेज में यह पकड़ में आ जाए तो किडनी बिमारी को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।
माइक्रो एलबुमिन यूरिया का बढना किडनी रोग का पहला पहचान होता है।जो बहुत ही आसानी से ठीक हो जाता है।माइक्रो एलबुमिन का इलाज न करवाने पर दूसरा चरण आता है जिसमें यूरिया बढ़ने लगता है।चेहरे,हाथ और तलवे में हल्के सूजन आने लगते है। भोजन में लिया गया प्रोटिन,पेशाब के साथ बाहर आने लगता है। जिससे दिन प्रतिदिन मरीज दुर्बल व कमजोर होता जाता है। मरीज को हमेशा उल्टी जैसा महसूस होता है।प्रोटीन के बाहर निकलने से किडनी का फ़िल्टर जाम होने लगता है।क्रियेटनिन तेजी से बढ़ने लगता है।इस हालत को सी.के.डी या किडनी फेल होना कहते है।ऐसे में मरीज को दम फूलने लगता है।पेशाब का निकलना और भी घट जाता है। गाढ़े पेशाब के साथ झाग आने लगता है।
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इस स्थिति को दवा से ठीक किया जाता है।सबसे पहले डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को अच्छे से अच्छा दवाओं से कन्ट्रोल किया जाता है।अधिक प्रोटीन वाले सभी भोजन (दूध, मांस और दाल )पर रोक लगा दिया जाता है। किडनी के खराब कोशिकाओं के मरम्मत के लिए जरूरी प्रोटिन (essential protien )दिया जाता है।जो दवा के रूप में (ketoanalogue ) उपलब्ध होता है।पेशाब की मात्रा बढ़ाने (जीएफआर) के लिए दवाएं दी जाती है।कुछेक महीनों में क्रियेटिनीन समान्य होने लगता है।
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